रूस में अशान्तिकाल की समाप्ति का पर्व : 4 नवम्बर
रूस में 4 नवम्बर को ’जन एकता दिवस’ मनाया जाता है
नवम्बर के शुरू में त्यौहार का दिन पड़ता है, इसकी आदत रूस के लोगों को सोवियत सत्ताकाल के समय से ही है। 1991 तक सोवियत संघ के निवासी 7 नवम्बर के दिन एक प्रमुख कम्युनिस्ट पर्व – 1917 की महान् समाजवादी क्रान्ति की जयन्ती के रूप में मनाया करते थे। समाजवादी क्रान्ति-दिवस सोवियत संघ में ख़ूब धूमधाम से मनाया जाता था। मस्क्वा (मास्को) के लाल चौक पर इस दिन एक शानदार परेड होती थी, जिसमें आम जनता भी जुलूस के रूप में शामिल होती थी। लेनिन समाधि पर बने मंच से सोवियत नेता जनता को सम्बोधित किया करते थे। लेकिन सोवियत संघ का पतन होने के बाद 7 नवम्बर को क्रान्ति-दिवस मनाना बन्द कर दिया गया।
क्रान्ति की जगह जन एकता
सोवियत संघ का पतन होने के पाँच साल बाद नए रूस के प्रथम राष्ट्रपति बरीस येल्तसिन ने फिर से 7 नवम्बर को छुट्टी का और त्यौहार का दिन घोषित कर दिया। इस तरह 1996 से 2004 तक 7 नवम्बर को ’आपसी मेल-मिलाप और सहमति’ के दिवस के तौर पर मनाया गया। लेकिन चूँकि 7 नवम्बर का दिन कम्युनिस्टों और समाजवादी क्रान्ति से ही जुड़ा माना जाता था, इसलिए देश की जनता ने उसे ’आपसी मेल-मिलाप और सहमति’ दिवस के तौर पर स्वीकार नहीं किया।
1991 तक सोवियत संघ के निवासी 7 नवम्बर के दिन एक प्रमुख कम्युनिस्ट पर्व – 1917 की महान् समाजवादी क्रान्ति की जयन्ती के रूप में मनाया करते थे। स्रोत : Yuryi Abramochkin / RIA Novosti
आख़िरकार रूस के अन्तर्धार्मिक संघ ने रूसी संसद के नाम एक अपील जारी की। इस अन्तर्धार्मिक संघ में रूस के सभी पारम्परिक धर्मों के प्रमुख शामिल थे। इस अपील में कहा गया था — हमारा मानना है कि 7 नवम्बर का दिन रूस के त्रासद बँटवारे का दिन था, इसलिए वह मेल-मिलाप और सहमति का दिन नहीं बन पाया है। अन्तर्धार्मिक संघ ने प्रस्ताव रखा कि 7 नवम्बर की जगह 4 नवम्बर को ’जन एकता दिवस’ मनाया जाना चाहिए। रूस की संसद के सदस्यों ने भी अन्तर्धार्मिक संघ के इस प्रस्ताव का समर्थन किया और सन् 2005 से 4 नवम्बर का दिन आधिकारिक तौर पर ’जन एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।
रूस के सनातन ईसाई धर्म की विशेषताएँ
बहुत पुराना इतिहास
सन् 1612 में मस्क्वा को पोल कब्ज़ावरों से मुक्त कराया गया था। उसी मुक्ति की याद में यह ’जन एकता दिवस’ मनाया जाता है। 17 वीं सदी के शुरू के उन सालों में रूस में बड़ी अशान्ति फैली हुई थी। 1558 में रियूरिक राजवंश का अन्त हो गया था। इसके बाद मस्क्वा रियासत में सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए विभिन्न आभिजात गुटों के बीच आपसी लड़ाई होने लगी थी। ये आभिजात गुट रियूरिज राजवंश के नकली वारिसों को सामने लाकर मस्क्वा की गद्दी पर अधिकार करना चाहते थे। इस आपसी लड़ाई में रूस तबाह हो गया था और लोग भूखों मरने लगे थे। इस लम्बी लड़ाई और आपसी युद्धों के काल को बाद में इतिहासकारों ने ’अशान्तिकाल’ कहकर पुकारा है।
उस ’अशान्तिकाल’ में रूस की हालत तब और ज़्यादा बिगड़ गई, जब पोलैण्ड और स्वीडिश सैनिकों ने रूस पर हमला कर दिया। मस्क्वा के आभिजात वर्ग ने भी पोलैण्ड के राजकुमार व्लदीस्लाफ़ को रूस का नया ज़ार स्वीकार कर लिया और पोलैण्ड की सेना को मस्क्वा में घुसने दिया। लेकिन राजा दिमित्री पझारस्की ने एक क़स्बे के मुखिया कुज़्मा मीनिन के साथ मिलकर जनसेना का गठन किया और पोलैण्ड व स्वीडन के सैनिकों का सामना करने लगे। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें रूस की जनसेना विजयी रही। रूस की जनसेना ने यह विजय नवम्बर 1612 में प्राप्त की थी। उसने मस्क्वा को विदेशी हमलावरों के कब्ज़े से छुड़वा लिया था। इसके एक साल बाद रियूरिक राजवंश के ही एक प्रतिनिधि को पहले ज़ार के रूप में फिर से रूस की गद्दी पर बैठा दिया गया।
अब रूस में भी होली मनाई जाती है
सन् 2006 में रूसी सनातन ईसाई धर्म के प्रमुख सन्त अलिक्सेय द्वितीय ने कहा था — तब सत्रहवीं शताब्दी में रूस की विभिन्न जातियों और विभिन्न धर्मों के निवासी इसलिए एकजुट हो गए थे ताकि विदेशी हमलावरों को अपनी धरती से खदेड़कर अपनी मातृभूमि को आज़ाद करवा सकें। ’जन एकता दिवस’ का पर्व मनाने के समर्थक रूसी लोगों का कहना है कि 4 नवम्बर को इस तरह का त्यौहार मनाना इस लिए उचित है क्योंकि यह दिवस कठिनाइयों के विरुद्ध हमारे देश की जनता को एकजुट करता है और उन्हें मिलकर मुश्किलों का सामना करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
कमज़ोर पहचान वाला पर्व
इस दिन हर साल रूस के राष्ट्रपति लाल चौक पर बनी कुज़्मा मीनिन और दिमित्री पझारस्की के प्रसिद्ध स्मारक पर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। सरकारी स्तर पर 4 नवम्बर को अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी दिन साध्वी मरियम के कज़ान दैवचित्र का सनातन ईसाई त्यौहार भी पड़ता है, इसलिए धार्मिक जुलूस भी निकाले जाते हैं। लेकिन इस सबके बावजूद रूस की आम जनता के बीच ’जन एकता दिवस’ नामक यह पर्व लोकप्रिय नहीं हो पाया है। रूसी जन सर्वेक्षण केन्द्र ’लेवादा सेन्त्र’ ने पिछले साल रूसी जनता के बीच एक सर्वेक्षण किया था, जिसमे 45 प्रतिशत रूसवासी यह नहीं बता पाए थे कि 4 नवम्बर को मनाए जाने वाले इस पर्व का ठीक-ठीक नाम क्या है और ’सुपरजॉब’ नामक वेबसाइट द्वारा किए गए सर्वेक्षण ने दिखाया कि सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 47 प्रतिशत लोग 4 नवम्बर को, बस, एक छुट्टी का दिन मानते हैं और इस दिन को किसी त्यौहार से नहीं जोड़ते। लेकिन यह बात भी सच है कि सन् 2010 में इस तरह के लोगों की संख्या 60 प्रतिशत थी यानी धीरे-धीरे यह दिन जनता के बीच एक त्यौहार के रूप में स्वीकार्य होता जा रहा है।
इस दिन हर साल रूस के राष्ट्रपति लाल चौक पर बनी कुज़्मा मीनिन और दिमित्री पझारस्की के प्रसिद्ध स्मारक पर फूल चढ़ाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। स्रोत : Mikhail Metzel / TASS
रूसी समाजशास्त्री और रूस के हायर स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के समाजशास्त्र विभाग के एक प्रमुख विश्लेषक रमान अब्रामफ़ का मानना है कि जब तक रूस में ’जन एकता दिवस’ त्यौहार मनाने से जुड़ी कोई परम्परा क़ायम नहीं हो जाती, रूस के ज़्यादातर निवासियों के लिए 17 वीं सदी में घटी वह घटना रूस के इतिहास की एक तारीख़-भर ही रहेगी। जबकि द्वितीय विश्व-युद्ध को रूसी लोग ’महान् देशभक्तिपूर्ण युद्ध’ कहकर याद करते हैं। रमान अब्रामफ़ ने रूस-भारत संवाद से कहा — जब तक ’जन एकता दिवस’ की अपनी कोई ख़ास पहचान नहीं बन जाती, यह दिन त्यौहार का रूप ग्रहण नहीं करेगा। लोग यही मानते रहेंगे कि 7 नवम्बर के दिन की जगह अब बस, 4 नवम्बर को छुट्टी होती है। हो सकता है समय बीतने के साथ-साथ रूस की जनता की मानसिकता बदल जाए, लेकिन ऐसा होने में बरसों और दशकों का समय लग जाएगा।
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