लड़ाकू चालक रहित विमानों (ड्रोनों) के ख़िलाफ़ नया रूसी हथियार
विगत अक्तूबर 2016 के अन्त में रूसी सँयुक्त उपकरण निर्माण निगम के प्रवक्ता ने बताया कि उनकी कम्पनी के वैज्ञानिकों ने सैद्धान्तिक रूप से एकदम नई क़िस्म का एक नया हथियार बनाया है। इस हथियार की ख़ासियत वे ठिकाने होंगे, जिनके ख़िलाफ़ उसका इस्तेमाल किया जाएगा। और यह नवीनतम हथियार आकाश में उड़ने वाले नन्हे लड़ाकू चालक रहित विमानों को अपना शिकार बनाएगा और उनको पूरी तरह से नेस्तानाबूद कर देगा।
क़रीब दस साल पहले व्यापक स्तर पर इन चालक रहित विमानों यानी ड्रोनों का इस्तेमाल शुरू किया गया था और इन ड्रोनों के आने से युद्ध करने का तरीका ही जैसे पूरी तरह से बदल गया। अब युद्ध के मैदान में सैनिकों की ज़रूरत धीरे-धीरे कम होती जा रही है। अब तो टोह लो और दुश्मन के ठिकाने को नष्ट कर दो। पहले बिना सैनिकों की सहभागिता के ऐसा करना संभव नहीं था। अब रोबोट सैनिकों का काम करने लगे हैं।
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बाहर से देखने में कोई भी चारवि (चालक रहित विमान) किसी विमान का ही मिनी मॉडल दिखाई देता है। जबकि वास्तव में इस चारवि पर कारगर हथियार तैनात किए जा सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि ये हथियार तोपों के रूप में या मिसाइलों के रूप में हों। चारवि को रेडियो-इलैक्ट्रोनिक युद्ध के साधनों का एक आदर्श वाहक साधन भी बनाया जा सकता है।
’झुण्ड’ क्या है और वह क्यों ख़तरनाक है
यह ’झुण्ड’ प्रणाली अमरीकी रक्षा उद्योग की नई खोज है। यह प्रणाली सोचने में जितनी आसान है, उसका इस्तेमाल उतना ही मुश्किल है। वास्तव में यह कल्पना ही बहुत सरल है – बहुत-सी बाधाएँ पैदा करके दुश्मन की हवाई सुरक्षा प्रणाली को भ्रमित कर दिया जाए। पहले भी इस तरह की कोशिशें कई बार की जा चुकी हैं और वे कोशिशें सफल भी रही है। लेकिन इस नई ’झुण्ड’ प्रणाली की ख़ासियत यह है कि हमलावर मिसाइलों या विमानों की पहचान करने वाले राडारों को बहुत सारे नन्हे-नन्हे चालक रहित विमान भेजकर भटका दिया जाए और राडार अपना काम करना बन्द कर दे। इस प्रणाली का ’झुण्ड’ नाम ही इसकी विशेषताएँ भी बताता है। कोई ड्रोन विमान या ड्रोन हैलिकॉप्टर एक साथ सैकड़ों छोटे-छोटे ड्रोन (चालक रहित विमान) आकाश में छोड़ देता है और वे मधुमक्खियों के झुण्ड की तरह आकाश में छा जाते हैं।
हर छोटे से छोटा ड्रोन विमान भी स्वचालित रूप से एक लड़ाकू हथियार होता है क्योंकि इस ड्रोन या चारवि को किसी भी तरह के बम, मिसाइल या रेडियो-इलैक्ट्रोनिक संसाधन से लैस किया जा सकता है। ड्रोनों के झुण्ड के रूप में भी यह अपने आप में एक हथियार है। इस झुण्ड में शामिल हर नन्हा ड्रोन या हर नन्हा चारवि अपनी-अपनी भूमिका निभाता है। कोई टोह लेने और जासूसी करने का काम करता है तो कोई ड्रोन बाधाएँ पैदा करता है और इनमें से ही कोई ड्रोन मिसाइल हमला कर सकता है।
इन सभी ड्रोनों का संचालन एक साथ एक ही संचालन केन्द्र से किया जाता है। ये ड्रोन आपस में भी एक-दूसरे से सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इस तरह युद्ध की एक नई प्रणाली, युद्ध करने का एक नया तरीका सामने आता है। यह नया हथियार (यानी ड्रोनों का झुण्ड) न सिर्फ़ वायु सुरक्षा क्षेत्र में दुश्मन का हमला नहीं होने देगा, बल्कि दुश्मन के राडारों को नाकाम करके किसी तयशुदा इलाके में ख़ुद ही पहले से सुनिश्चित ठिकानों को नष्ट कर देगा। उसी समय वायु सुरक्षा के पारम्परिक संसाधन इस झुण्ड के सामने असफल हो जाएँगे क्योंकि किन्हीं दो-चार मिसाइलों से ड्रोनों के इस झुण्ड का सफ़ाया करना नामुमकिन होगा।
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’झुण्ड’ के ख़िलाफ़ नया रूसी हथियार
अगर ड्रोनों या चालक रहित विमानों का यह ’झुण्ड’ अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएगा तो इसे रोकना पूरी तरह से असम्भव है। इसलिए रूसी आविष्कारकों ने नया हथियार बनाते हुए यह कोशिश की है कि इस ’झुण्ड’ को लक्ष्य के पास पहुँचने से पहले ही नष्ट कर दिया जाए।
पुराने ’झुण्ड’ रोधी हथियार की बजाय नया रूसी हथियार सक्रिय कार्रवाई के सिद्धान्त पर आधारित है। सामान्य रेडियो-इलैक्ट्रोनिक बाधाएँ पैदा करने की जगह, नया रूसी हथियार इन नन्हे ड्रोन विमानों की इलैक्ट्रोनिक व्यवस्था को ही पूरी तरह से नाकाम कर देता है। इस तरह इन नन्हे ड्रोनों को नष्ट करने की जगह उनकी संचालन व्यवस्था को बेकाम कर दिया जाता है और इन ड्रोनों को धातु के बेकार टुकड़ों में बदल दिया जाता है। छोटे-छोटे ड्रोन विमानों पर फ़ायरिंग करने की जगह एक ऐसी सैद्धान्तिक रणनीति अपनाई जाती है कि ड्रोनों के झुण्ड और उनके संचालन केन्द्र के बीच आपसी सम्पर्क ही ख़त्म हो जाता है।
वैज्ञानिकों ने अभी तक यह नहीं बताया है कि इस रूसी हथियार को कारगर बनाने के लिए किस सैद्धान्तिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस नए हथियार को अभी तक गुप्त रखा जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि शायद इस नए हथियार में ऐसी इलैक्ट्रो-चुम्बकीय तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जो रेडियो-इलैक्ट्रोनिकी को नाकाम कर देती है। और शायद विशेषज्ञों का यह अनुमान ठीक भी है क्योंकि रूस में लम्बे समय से विद्युत-चुम्बकीय विकीरण का युद्ध में इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है। अगर यह बात ठीक है तो ड्रोनों पर ऐसा उच्च वोल्टेज वाला करेण्ट छोड़ा जाता है, जो उनमें लगे सभी इलैक्ट्रोनिक उपकरणों को जलाकर ख़ाक कर देता है। विद्युत-चुम्बकीय बम भी इन ड्रोनों के ख़िलाफ़ काफ़ी असरदार साबित हो सकता है।
ज़मीन से कुछ सौ मीटर की ऊँचाई पर इस बम में धमाका करके विस्फोट-स्थल से चार किलोमीटर के भीतर के इलाके में सारी इलैक्ट्रोनिकी को पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता है। लेकिन फिर भी अभी बहुत से ऐसे सवाल बाक़ी छूट जाते हैं, जिनका जवाब खोजना ज़रूरी है। अभी तक यह मालूम नहीं हुआ है कि कैसे यह इलैक्ट्रो-चुम्बकीय तरंग पैदा की जाएगी और कैसे उसे लक्ष्य तक भेजा जाएगा। लेकिन यह बात साफ़ हो चुकी है कि रूसी हथियार अब विकास के एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं।
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