यूरोसंघ की जगह अब शंसस में शामिल होना चाहे तुर्की
तुर्की के राष्ट्रपति रजेप तैयप एरदोगान ने कहा है कि तुर्की यूरोसंघ की जगह अब शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) से जुड़ने की बात सोच रहा है। तुर्की के समाचारपत्र ’ख़बरतुर्क’ ने लिखा है कि अपनी उज़्बेकिस्तान और पाकिस्तान की यात्रा के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए रजेप तैयप एरदोगान ने कहा — यूरोसंघ के सवाल पर तुर्की अब और लटके रहना नहीं चाहता।
रजेप तैयप एरदोगान का मानना है कि निकट भविष्य में ही ब्रेकज़िट (ब्रिटेन के यूरोसंघ से बाहर निकलने) जैसी कई और घटनाएँ भी सामने आ सकती हैं। उन्होंने कहा — इटली और फ़्राँस में भी यूरोसंघ को छोड़ने के लिए आवाज़ें उठाई जा रही हैं। ऐसी स्थिति में तुर्की बड़ा आराम महसूस कर रहा है। यह नहीं मानना चाहिए कि तुर्की के पास यूरोसंघ के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। तुर्की, भला, शंसस (शंघाई सहयोग संगठन) का सदस्य क्यों नहीं बन सकता है? मैंने इस सवाल पर पूतिन और नज़रबाएव से बात की है। शंसस का सदस्य बनकर भी हम पूरी तरह से आज़ाद रहेंगे।
शंघाई सहयोग संगठन की गतिविधियों से क्षेत्रीय सुरक्षा मज़बूत
रजेप तैयप एरदोगान ने यूरोसंघ के ख़िलाफ़ शिकायत करते हुए कहा — यूरोसंघ ने तुर्की को अपने साथ जोड़ने की प्रक्रिया इतनी लम्बी खींच दी कि ऐसा लगने लगा है कि यह प्रक्रिया कभी ख़त्म ही नहीं होगी। शुरू में तो यूरोसंघ अपने शिखर-सम्मेलनों में हमारे प्रधानमन्त्री को भी बुलाता था, लेकिन अब वो ऐसा नहीं करता। लैटिन अमरीका के साथ यूरोसंघ ने वीजा प्रणाली को रद्द कर दिया है और हमें अभी भी लम्बा इन्तज़ार करने को कहा जा रहा है।
इससे कुछ ही दिन पहले रजेप तैयप एरदोगान ने यह जानकारी दी थी कि 2017 में तुर्की में इस सवाल पर जनमतसंग्रह कराया जा सकता है कि यूरोसंघ में शामिल होने के लिए चल रही वार्ता को रोक दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि तुर्की की संसद तुर्की में मौत की सज़ा देने के कानून को पारित कर देगी और तुर्की की जनता इस कानून का समर्थन करेगी तो वे भी राष्ट्रपति के रूप में इस कानून की पुष्टि कर देंगे। उल्लेखनीय है कि तुर्की ने सन् 2002 में ’मौत की सज़ा’ को रद्द कर दिया था क्योंकि यूरोसंघ की सदस्यता पाने के लिए यह एक प्रमुख शर्त थी। इस बीच विगत 13 नवम्बर को यूरोसंघ के अध्यक्ष मार्टिन शुल्ज ने तुर्की को यह चेतावनी दी है कि ’यदि तुर्की ’मौत की सज़ा’ को देश में फिर से लागू करेगा तो यूरोसंघ में तुर्की को शामिल किए जाने की प्रक्रिया को भी रोक दिया जाएगा’।
राष्ट्रपति ट्रम्प से किसी चमत्कार की आशा नहीं
इस सिलसिले में रूसी समाचारपत्र ’कमेरसान्त’ से बात करते हुए मस्क्वा (मास्को) स्थित कर्नेगी केन्द्र के विशेषज्ञ प्योतर तपिचकानफ़ ने कहा — तुर्की के लिए शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) किसी भी हालत में यूरोसंघ का विकल्प नहीं हो सकता। शायद एरदोगान को यह पता ही नहीं है कि शंसस (शंघाई सहयोग संगठन) कैसा संगठन है। अगर राष्ट्रपति एरदोगान के भाषण लिखने वालों ने यह भाषण लिखा था तो उन्होंने भी इस सिलसिले में अपने अज्ञान को ही प्रदर्शित किया है। यूरोसंघ और शंसस — एक-दूसरी से पूरी तरह भिन्न दो अलग-अलग संस्थाएँ हैं। उनमें आपस में न तो कोई तुलना ही की जा सकती है और न ही उनमें आपस में कोई प्रतिस्पर्धा या कोई प्रतियोगिता है। यूरोसंघ — बहुत से देशों का एक राज्यसंघ जैसा है, जबकि शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) उससे बहुत अलग और बहुत हलका संगठन है, जिसके सदस्यों के बीच यूरोसंघ से अलग बहुत से सवालों पर आपस में नज़रियों में मतभेद हो सकते हैं और जिनका राजनीतिक विकास भी अलग-अलग ढंग से हो सकता है।
उसी समय — प्योतर तपिचकानफ़ ने कहा — यूरोसंघ से अपने रिश्तों के बावजूद तुर्की बहुत पहले से ही शंसस (शंघाई सहयोग संगठन) के साथ जुड़ा हुआ है और वह शंसस में ’सहयोगी देश’ का स्तर रखता है। प्योतर तपिचकानफ़ ने आगे कहा — शंसस में तुर्की की दिलचस्पी एक ऐसे मंच के रूप में है, जिसमें चीन की सहभागिता से बुनियादी ढाँचे से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं पर अमल किया जाता है। इतनी विशाल परियोजनाओं पर तुर्की अकेले काम नहीं कर सकता है। तुर्की को शंसस में ’पर्यवेक्षक’ का स्तर देने में भी कोई बड़ी बाधा नहीं है, लेकिन शंसस (शंघाई सहयोग संगठन) को पहले भारत और पाकिस्तान को ही अपना पूर्ण सदस्य बनाकर उन्हें वास्तव में अपना सहयोगी बनाना है। इसी काम में शंसस को पाँच-छह साल लग जाएँगे।
पहली बार कमेरसान्त में प्रकाशित।
क्या उत्तरी ध्रुव पर कब्ज़े के सवाल पर युद्ध हो सकता है?