अलिक्सान्दर कदाकिन — भारत में चमकता रूसी सूर्य
हर गर्मियों में, बिना नागा, अलिक्सान्दर कदाकिन (जिनके दोस्त और साथी उन्हें प्यार से ’साशा’ कहा करते थे) लगभग छह सप्ताह के लिए दिल्ली से ग़ायब हो जाते थे। इस दौरान वे रूस के कोहकाफ़ के इलाके में बने एक स्वास्थ्य केन्द्र में आराम किया करते थे और अपना जल-उपचार कराया करते थे। इस तरह वे अपना कायाकल्प कराकर और अपने शरीर की बैटरी में नई ऊर्जा भरकर फिर पूरे साल तक भारत-रूस सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने के लिए जुट जाते थे। वे लगातार भारत की यात्रा किया करते थे और देश के कोने-कोने में राजनीतिक और सरकारी दरवाज़ों पर दस्तक देकर विभिन्न स्तरों पर दो देशों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने, दो देशों के बीच रिश्तों को एक-दूसरे के और अधिक अनुकूल बनाने तथा आपसी सांस्कृतिक समझ को बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते थे।
भारत-सोवियत/भारत-रूस रिश्तों के विभिन्न चरणों में साशा ने भारत में विभिन्न राजनयिक पदों पर क़रीब 20 साल बिताए। भारत के हमारे राजनीतिक ढाँचे, नौकरशाही की परम्परा और सांस्कृतिक विविधता से वे भलीभाँति परिचित थे। धाराप्रवाह हिन्दी बोलकर वे हर जगह सहज ही अपनी पैठ बना लेते थे, जबकि दिल्ली में काम करने वाले ज़्यादातर विदेशी राजनयिक ऐसा नहीं कर पाते हैं। अपने इसी भारत प्रेम और हिन्दी ज्ञान की वजह से वे भारत की नस-नस पहचानते थे और भारत के प्रति बेहद संवेदनशील थे। इसका मतलब यह है कि वे भारत के बारे में अपनी सरकार को हर स्थिति का ठीक-ठीक आकलन बताया करते थे। दिल्ली में भारत को इतनी गहराई से जानने-पहचानने की उनकी इस ख़ासियत की सराहना की जाती थी। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि द्विपक्षीय सम्बन्धों के विकास में उनकी इस संवेदनशीलता से, उनके इस गुण से बड़ी सहायता मिली।
रूस के राजदूत अलिक्सान्दर कदाकिन का नई दिल्ली में निधन
साशा भारत को अपनी आत्मा की गहराइयों से प्यार करते थे और भारतीय संस्कृति व भारत की सांस्कृतिक परम्पराओं पर पूरी तरह से फ़िदा थे। इसका एक प्रमाण 2011 में तब सामने आया, जब रूस के कुछ लोगों ने इस्कॉन द्वारा प्रकाशित भगवद् गीता के एक रूसी संस्करण पर प्रतिबंध लगाने की मांग की और इसके लिए एक रूसी अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। उनका तर्क था कि यह ग्रन्थ धार्मिक, सामाजिक और जातीय असहिष्णुता को उकसाता है। जब यह सूचना भारत पहुँची तो इस सवाल पर भारत की जनता में भी आक्रोश दिखाई देने लगा और हमारे सांसद भी गुस्से में आकर इसके ख़िलाफ़ बोलने लगे। साशा ने उस दौर में न केवल भारत में इस मुद्दे पर एक सार्वजनिक राजनयिक अभियान चलाया बल्कि रूस की सरकार को भी इस संवेदनशील मुद्दे पर ठीक-ठीक जानकारी देकर भारतीय जनता की भावनाओं से परिचित कराया। भगवद् गीता पर आरोप लगाने वाले रूसी लोगों को उन्होंने ’पागल’ बताया और रूस की सरकार के सामने तथा सार्वजनिक रूप से भारत की सरकार और संसद की प्रतिक्रिया का बचाव किया और घोषणा की कि गीता भारत, रूस और दुनिया के लिए ’ज्ञान और प्रेरणा का स्रोत है’।
रूस में भारत के राजदूत के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मुझे साशा कदाकिन के साथ काम करने का सौभाग्य मिला। हम लोगों ने एक ऐसी टीम की तरह एक-दूसरे के साथ सहयोग किया, जिसका उद्देश्य सिर्फ़ यही था कि परस्पर लाभ के लिए भारत और रूस के बीच रणनीतिक सहयोग को और आगे बढ़ाया जाए। इसके दो उदाहरण भी मैं यहाँ दे सकता हूँ।
पहला उदाहरण रूस और भारत के बीच कच्चे हीरों के सीधे व्यापार को बढ़ावा देने से सम्बन्ध रखता है। भारत रूस में निकाले जाने वाले क़रीब चार अरब डॉलर के कच्चे हीरे (अनगढ़ हीरे) दूसरे देशों से आयात करता है। भारत और रूस की सरकारों ने मिलकर इस स्थिति को बदलने की कोशिश की ताकि रूस से सीधे ये अनगढ़ हीरे भारत आ सकें। हालाँकि दोनों ही देशों में हीरे के व्यापार से जुड़े व्यवसायियों और अधिकारियों ने कुछ समय तक इसका भारी विरोध किया। फिर दिल्ली में विश्व हीरा सम्मेलन हुआ, जिसका उद्घाटन भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन ने मिलकर किया। इस सम्मेलन ने दो देशों के बीच हीरे के सीधे व्यापार को गति प्रदान की और इसमें साशा द्वारा किए गए प्रयास अविस्मरणीय हैं। उनके द्वारा की गई अथक कोशिशों को नकारा नहीं जा सकता है।
दूसरा उदाहरण रूसी कामोव हेलीकाप्टरों का भारत में मिलकर उत्पादन करने की परियोजना से सम्बन्धित है। रक्षा क्षेत्र में ’मेक इन इण्डिया’ की नीति के तहत यह पहली परियोजना थी, जिस पर अमल होने जा रहा था, इसलिए इस परियोजना को लागू करने में नौकरशाही से जुड़ी अनेक बाधाएँ सामने आ रही थीं। इन बाधाओं को दूर करने के लिए रूस और भारत दोनों ही देशों के नेताओं के सीधे हस्तक्षेप की ज़रूरत थी। साशा ने रूसी अधिकारियों द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों और नौकरशाही से जुड़ी बाधाओं को हल करने में बड़ी सहायता की।
इन दोनों ही मामलों में साशा ने अपनी प्रतिबद्धता और साहस का प्रदर्शन किया। हमारे आपसी द्विपक्षीय रिश्तों के लिए एक बार जब वह किसी मुद्दे के महत्व को समझ लेते थे, तो अपनी सरकार के सामने उच्चतम स्तर तक उसे उठाने में कोई कोर-कसर उठा नहीं रखते थे। कई बार तो उन्हें इसके लिए अपने ही मन्त्रालय में अपने वरिष्ठ सहयोगियों से भी विमुख होना पड़ता था। इन दोनों मामलों में भी ऐसा ही हुआ था।
भारत में साशा बेहद लोकप्रिय थे और इस भारी लोकप्रियता का एक महत्वपूर्ण कारण था — भारत और उसकी संस्कृति के प्रति उनका गहरा प्रेम। एक और बात यह भी थी कि वे पहली ही मुलाक़ात में किसी के भी दिल तक पैठ बना लेते थे। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि वे अपने दोस्तों और परिचितों को कभी भूलते नहीं थे। अगर पुराने ज़माने का कोई परिचित भी कभी कहीं उन्हें मिल जाता था तो उससे भी वे गहरी आत्मीयता से मिलते और बतियाते थे। वर्ष 2012 में रूसी दूतावास ने रूस में भारत के राजदूत रहे त्रिलोकी नाथ कौल की जन्म शताब्दी के अवसर पर एक फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया था, जिसका उद्घाटन भारत के विदेशमन्त्री ने किया था। साशा की तरह ही राजदूत त्रिलोकी नाथ कौल को रूस-भारत रिश्तों की प्रगाढ़ता में एक महत्वपूर्ण स्तम्भ माना जाता है। उस फ़ोटो प्रदर्शनी में अनेक दुर्लभ तस्वीरें जुटाई गई थीं, जिनसे दिवंगत भारतीय राजनयिक त्रिलोकी नाथ कौल को अन्तरंग और आत्मीय श्रद्धांजलि दी गई थी। बहुत कम ऐसा होता है, जब किसी देश का दूतावास किसी ऐसी हस्ती को याद करने के लिए अपना समय और पैसा खर्च करता है, जिसका वर्तमान काल में तात्कालिक कोई महत्व नहीं है। लेकिन साशा को वर्तमान और भविष्य के लिए ऐतिहासिक अनुभवों की प्रासंगिकता की पूरी-पूरी समझ थी।
कभी-कभी साशा बेरहम भी हो जाते थे और अपने मन की बात खुलकर कह दिया करते थे। जैसे एक बार जब भारत ने फ़्राँसीसी रफ़ाल विमान ख़रीदने का फ़ैसला कर लिया तो साशा ने रफ़ाल विमान की तुलना मच्छर जैसे चीन के सुखोई विमान से की, जिसे कभी भी दो उंगलियों के बीच मसला जा सकता है। उन्हें लग रहा था कि रूसी विमान का पूरी तरह से मूल्यांकन किए बिना ही भारत ने रफ़ाल विमान ख़रीदना का फ़ैसला कर लिया है। एक बार तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह भी कहा था कि रक्षा खरीद के लिए भारत द्वारा जारी की जाने वाली निविदाएँ रूसी कम्पनियों के लिए नुक़सानदेह होती हैं।
हालाँकि इस तरह की बातें कहना आम तौर पर राजनयिकों के करियर के लिए खतरनाक हो सकता है। लेकिन भारत के एक पक्के दोस्त के रूप में साशा की छवि और साख ऐसी थी जो उनकी विशेष सुरक्षा करती थी। उनकी सरकार उनकी उन बातों को भी नज़रअन्दाज़ कर देती थी, जिन्हें आपसी रणनीतिक सहयोग के लिए हानिकारक माना जा सकता है।
हाल ही में मैंने साशा द्वारा कुछ साल पहले दिए गए एक भाषण का एक उद्धरण पढ़ा था। अपने उस भाषण में साशा ने कहा था — ’कोई व्यक्ति सिर्फ़ यह अनुमान ही लगा सकता है कि ईश्वर की भाग्य-पुस्तक में उसके लिए क्या लिखा हुआ है, लेकिन मेरा मानना है कि ईश्वर ने रूसी और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में मेरे बारे में लिख रखा है।’ हम इसमें बस, इतना और जोड़ सकते हैं कि ईश्वर ने शायद अपनी उस किताब में उनकी उपलब्धियों की सूची जोड़ रखी है, जिसने दोनों भाषाओं में किताब के ढेरों पन्ने घेर रखे हैं।
इस लेख के लेखक 2013 से 2016 तक रूस में भारत के राजदूत रह चुके हैं।