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रूस का झण्डा ऐसा क्यों है?

रूसी तिरंगे झण्डे के तीनों रंग किस चीज़ के प्रतीक हैं, इस बारे में कोई अधिकृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। रूसी संविधान में इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है, इसलिए रूस की जनता अपने-अपने ढंग से इन तीन रंगों की व्याख्या करती है। कोई इसे यूरोपीय राज्य चिह्नों से जोड़कर देखता है तो कोई यह बताता है कि रूसी तिरंगे का सफेद रंग शान्ति और खुलेपन का प्रतीक है, नीला रंग निष्ठा और शुद्धता का और लाल रंग साहस, उदारता और प्यार का। 

रूसी तिरंगे को भूगोल से जोड़कर भी उसके रंगों की व्याख्या की जाती है। अट्ठारहवीं सदी के शुरू में रूसी साम्राज्य में तीन ऐतिहासिक प्रदेश शामिल थे। ये प्रदेश थे — महान् रूस (आज के रूस का पश्चिमी हिस्सा), श्वेत रूस (बेलारूस) और छोटा रूस (आज के उक्रईना का एक हिस्सा)। इन तीनों प्रदेशों को सफ़ेद, नीला और लाल रंग अभिव्यक्त करते थे। इसीलिए 1682 से 1725 तक शासन करने वाले रूसी ज़ार प्योतर प्रथम ने अपने झण्डे में इन तीन रंगों को शामिल किया था।

युद्धपोतों के लिए ध्वज

प्योतर प्रथम जब गद्दी पर बैठे तो रूस के पास अपना समुद्री जहाज़ी बेड़ा नहीं था। इसलिए प्योतर प्रथम ने जो सबसे महत्वपूर्ण काम करने का बीड़ा उठाया, वह यह था कि रूस के पास अपना जहाज़ी बेड़ा होना चाहिए ताकि रूस भी दुनिया में अपना प्रभाव जमा सके। रूस की राज्य चिह्न परिषद के अध्यक्ष इतिहासकार गिओर्गी विलिनबाख़फ़ के अनुसार, रूसी जहाज़ी बेड़ा बनने से पहले ही जब ज़ार प्योतर प्रथम नदियों में अपनी नौकाओं से कहीं आते-जाते थे तो वे इस रूसी तिरंगे का उपयोग किया करते थे और उनकी नौका पर यह तिरंगा ध्वज लहराता था।

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यह भी माना जाता है कि रूस के ज़ार प्योतर प्रथम ने हॉलैण्ड के झण्डे से ये रंग लिए थे, जिसे उस समय दुनिया की सबसे ताक़तवर समुद्री महाशक्ति माना जाता था। यूरोपीय जीवन का अध्ययन करने के लिए प्योतर प्रथम ने तब हॉलैण्ड की यात्रा की थी। लेकिन गिओर्गी विलिनबाख़फ़ का मानना है कि प्योतर प्रथम हॉलैण्ड जाने से पहले अपने कैशौर्यकाल में ही रूसी तिरंगे का इस्तेमाल करने लगे थे। इस तरह गिओर्गी विलिनबाख़फ़ यह बताना चाहते हैं कि रूसी तिरंगे के रंग विदेश से नहीं आए, बल्कि ये रूस की ही परम्परा से जुड़े हुए हैं।

एक साम्राज्य – दो झण्डे

रमानोफ़ वंश के ज़ार प्योतर के वंशजों ने जब सत्ता संभाली तो रूस में एक तरह से राज्यशक्ति दो भागों में बँटी हुई थी। तब सफ़ेद-नीले-लाल तिरंगे के साथ-साथ काले-पीले-सफ़ेद तिरंगे का भी इस्तेमाल किया जाता था। सफ़ेद-नीला-लाल झण्डा तब रूस के व्यापारिक जहाज़ इस्तेमाल करते थे और काला-पीला-सफ़ेद झण्डा रूस का राजकीय ध्वज माना जाता था। अब उस झण्डे को ’रूसी ज़ारशाही का झण्डा’ कहा जाता है। 1855 से 1881 तक रूस में शासन करने वाले ज़ार अलिक्सान्दर द्वितीय ने इस झण्डे को रूस का राजकीय ध्वज बनाया था। इस झण्डे का काला और लाल रंग रूसी राज्य-चिह्न से लिया गया था, जिस पर पीली सुनहरी पृष्ठभूमि में दो सिर वाला एक बाज़ बना हुआ था और सफ़ेद रंग रूस की सुरक्षा करने वाले रूसी देवता पवित्र गिओर्गी पबेदानोसित्स (विजयवाहक) का प्रतीक है।

राज्य-चिह्न विशेषज्ञ व्लदीमिर मिदवेदफ़ ने समाचार पत्र ’इज़्वेस्तिया’ के साथ बातचीत करते हुए बताया कि इस तरह रूसी ज़ारशाही के दौरान रूसी साम्राज्य का प्रतीक कोई एक ध्वज नहीं था। अक्सर विभिन्न ज़ारों के बीच इस सवाल पर मतभेद बना रहा। 1881 से 1894 तक रूस के ज़ार रहे अलिक्सान्दर तृतीय ने अलिक्सान्दर द्वितीय के फ़ैसले को रद्द कर दिया और यह आदेश जारी किया कि रूस में सरकारी समारोहों के अवसर पर सफ़ेद-नीला-लाल ध्वज फ़हराया जाए। उनका मानना था कि यह सफ़ेद-नीला-लाल ध्वज ही वास्तव में असली रूसी झण्डा है। अक्सर राजकीय समारोहों में तब दोनों झण्डों का उपयोग किया जाता था। सरकारी इमारतों पर रूसी ज़ारशाही का प्रतीक झण्डा लहराया जाता था और व्यापारिक इमारतों पर सफ़ेद-नीला-लाल ध्वज।

विलिनबाख़फ़ ने लिखा है कि सन् 1840 में रूस के व्यापारी ध्वज को तब विशेष महत्व मिला, जब आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे अखिल स्लाव कांग्रेस के प्रतिभागियों ने सफ़ेद-नीले-लाल झण्डे को अपना झण्डा स्वीकार कर लिया और इन रंगों को अपने रंग मान लिया। इस तरह यह माना गया कि स्लाव जातियों और रूस का आपस में निकट का रिश्ता है। आज ये तीनों रंग बहुत से ऐसे देशों के झण्डों में शामिल हैं, जिन्हें आज़ादी मिल चुकी है। इन देशों में चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, सेर्बिया, क्रोएशिया और स्लोवेनिया आते हैं।

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लाल झण्डे से राष्ट्रीय झण्डे तक

1917 की समाजवादी अक्तूबर क्रान्ति के बाद ज़ारशाही रूस के दोनों झण्डों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। रूस की नई सोवियत सरकार ने लाल झण्डे को अपना झण्डा स्वीकार किया, जिसपर एक कोने में हँसिया, हथौड़ा और सितारा बना हुआ था। यही झण्डा सोवियत सरकार का प्रतीक माना जाने लगा। तब सफ़ेद-नीले-लाल तिरंगे का इस्तेमाल रूस छोड़कर जाने वाले वे प्रवासी करने लगे, जो कम्युनिस्टों के विरोधी थे। इसीलिए पिछली सदी के नौवें दशक के अन्त में और अन्तिम दशक के शुरू में सोवियत सरकार के विरुद्ध लोकतान्त्रिक भावना रखने वाले विरोधियों ने सफ़ेद-नीले-लाल तिरंगे को अपना प्रतीक बना लिया। कुछ ही समय बाद सोवियत सत्ता का पतन हो गया और सोवियत संघ का विघटन हो गया। 

1991 में नए रूस के सामने आने के बाद यह सफ़ेद-नीला-लाल तिरंगा ही नए रूस का राजकीय झण्डा बना। लेकिन रूस में आज भी राजनीतिक सभाओं में कम्युनिस्ट लाल झण्डा फहराते हैं तो ज़ारशाही के समर्थक और दक्षिणपन्थी काला-लाल-सफ़ेद झण्डा। समय-समय पर रूस के उदारवादी-लोकतान्त्रिक दल के सांसद भी संसद में यह सवाल उठाते हैं कि रूसी ज़ारशाही के झण्डे को ही आज के रूस का राजकीय ध्वज बना लेना चाहिए क्योंकि उनका कहना है कि इस झण्डे के नीचे ही रूस ने विभिन्न लड़ाइयों में शानदार विजयें हासिल की थीं। लेकिन उनकी इस माँग पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता है। राज्य-चिह्न विशेषज्ञ व्लदीमिर मिदवेदफ़ का मानना है सफ़ेद-नीला-लाल झण्डा आज सारी दुनिया में रूसी राज्य की पहचान बन चुका है।

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