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क्या नया रूसी टैंक अरमाता एटम बम भी छोड़ सकेगा?

रूसी विशेषज्ञों ने बताया कि नवीनतम रूसी टैंक टी-14 ’अरमाता’ से छोड़े जा सकने वाले एटमी गोले का निर्माण इसलिए नहीं किया जा रहा है क्योंकि टैंक से छोड़े जा सकने वाले गोले बहुत दूर तक नहीं जा पाते हैं और एटम बमों से निकलने वाली रेडियमधर्मीयता ख़ुद अपनी सेना के लिए ही खतरनाक और हानिकारक हो सकती है। 

रूसी टेलीविजन चैनल एनटीवी के सैन्य-कार्यक्रमों के प्रमुख सिर्गेय कुज़्नित्सोफ़ ने रूस-भारत संवाद को बताया — टैंक में लगी हुई तोप से ज़्यादा से ज़्यादा तीन किलोमीटर दूर तक मार की जा सकती है। और ख़ुद से इतनी दूरी पर एटमी गोले छोड़ना आत्महत्या करने के अलावा और क्या होगा। 

रूसी समाचारपत्र ’इज़्वेस्तिया’ के सैन्य-विश्लेषक दिमित्री लितोफ़किन ने कहा — आप ज़रा सोचिए, अगर युद्ध के मैदान में टैंकों से छोड़े जाने वाले एटमी गोले सैनिकों से दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर गिरेंगे तो उनसे पैदा होने वाले रेडियमधर्मी बादलों को हवा जल्दी ही उन सैनिकों तक पहुँचा देगी।

कुज़नित्सोफ़ ने कहा — अगर उद्देश्य यह है कि ऐसा गोला बनाया जाए जो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को मार दे तो गोले में बारूद के साथ-साथ यूरेनियम भी मिलाया जा सकता है। यह एटमी गोला छोड़ने से कहीं ज़्यादा मारक होगा।

टी-14 ’अरमाता’ टैंक को 2015 में पहली बार मस्क्वा (मास्को) में हुई विजय दिवस की परेड में सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया गया था। इस टैंक की ख़ासियत यह है कि इसके ऊपर लगी तोप पूरी तरह से चपटी होती है और उसमें कोई सैनिक नहीं बैठा होता है। ’अरमाता’ टैंक के आधार (प्लेटफ़ार्म) पर ही दूसरे प्रकार के हथियार या वाहन भी बनाए जा सकते हैं, जैसे थलसेना की बख़्तरबन्द गाड़ी, स्वचालित तोप, मरम्मत और बचाव का काम करने वाली गाड़ी या अग्निवर्षक तोप आदि।

क्या रूस के पास अमरीका से भी बड़ा बम है?

 

एटमी गोलों का इस्तेमाल कहाँ किया गया या किया जा सकता है 

रणनीतिक परमाणु हथियार के रूप में छोटे एटमी गोले बनाने का काम सोवियत संघ में पिछली सदी के छठे दशक में शुरू किया गया था। फिर सातवें दशक में सेना ने ऐसे रणनीतिक गोले बनाने का व्यापक कार्यक्रम बनाया था। इनमें आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले 156 मिलीमीटर और 406 मिलीमीटर कैलीबर के तोप के एटमी गोले भी शामिल थे।

दिमित्री लितोफ़किन ने कहा — सोवियत सत्ता काल में बारुदी सुरंगें भी एटमी हुआ करती थीं। सोवियत संघ के गोला-बारूद के भण्डारों में सचमुच ऐसे हवाई बम तथा तोपों और टैंकों से छोड़े जाने वाले गोले रखे हुए थे, जिन्हें ’एटम बम या एटमी गोले’ कहा जा सकता है। लेकिन उनका इस्तेमाल करना ठीक नहीं समझा जाता था।

  आज 152 मिलीमीटर के ऐसे 3बीवी3 गोलों का इस्तेमाल ’म्स्ता एस० अकात्सिया’ और ’गिआसीत’ तोपों में किया जा सकता है, जिनका अभी भी रूसी सेना इस्तेमाल करती है। लेकिन रूसी सेना के एक पूर्व कर्नल वीक्तर मुरख़ोव्स्की ने बताया कि आज रूसी सेना के पास इस तरह के गोले नहीं हैं।  

दिमित्री लितोफ़किन ने कहा — सैन्य उद्देश्यों से एटमी गोलों का इस्तेमाल बैलिस्टिक मिसाइलों में करना ही ठीक है, जो सैकड़ों किलोमीटर दूर जाकर मार करती हैं, जैसे एटमी बमों का इस्तेमाल ’इस्कान्दर-एम’ नामक मिसाइल से किया जाना चाहिए, जो कम से कम 500 किलोमीटर दूर लक्ष्य को अपना निशाना बनाता है।  

यह अफ़वाह उड़ी कैसे?

रूसी मीडिया ने ’डिप्लोमैट’ नामक एक अमरीकी पत्रिका में छपी एक सूचना को प्रकाशित करना शुरू कर दिया। इस सूचना में अपुष्ट मीडिया रिपोर्टों के हवाले से कहा गया था कि रूसी रक्षा उद्योग की एक कम्पनी ’उराल-वगोन-ज़वोद’ न सिर्फ़ नई 2ए83 तोप के साथ पुराने टी-14 गोलों के उन्नत रूप का फिर से उत्पादन शुरू करने वाली है, बल्कि उसने युद्ध के मैदान में इस्तेमाल करने के लिए एक नए रणनीतिक एटमी गोले का भी विकास किया है। 

जब इस ख़बर की असलियत की जाँच की गई तो पता लगा कि यह अफ़वाह ’डिफ़ेंस वन’ नामक वेबसाइट ने उड़ाई थी, जिसमें पोटोमैक इंस्टीट्यूट के प्रमुख फ़िलिप कार्बर ने यह बताया है कि रूस ऐसे बम और गोले भी बना सकता है।

उस झूठी ख़बर में कार्बर ने कहा था — रूसियों ने यह ऐलान किया है कि ’अरमाता’ के बाद सामने आने वाले नए उन्नत टैंक में 152 मिलीमीटर की मिसाइल तोप लगी होगी। यह नया टैंक एटमी गोले छोड़ेगा। अब जो करना है, वो करो। उन्होंने तो एटमी टैंक बनाने की बात शुरू कर दी है। ऐसा टैंक, जो एटमी गोले छोड़ेगा। बस, यही कुछ बाक़ी रह गया था।

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