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नया चीनी विमानवाहक युद्धपोत रूसी अवधारणा पर आधारित

विगत अप्रैल माह के आख़िर में पानी में उतारे गए नए चीनी विमानवाहक युद्धपोत ’शानदून’ में बहुत कुछ रूसी हो सकता है। जैसाकि चीन की सरकार ने ऐलान किया है, यह पूरा युद्धपोत चीन में ही बनाया गया है। लेकिन फिर भी रूस का यही मानना है कि इस युद्धपोत को बनाने में रूसी तकनीक और रूसी डिजाइन और रूसी अवधारणा का ही इस्तेमाल किया गया है। 

इस विमानवाहक युद्धपोत को बनाने के लिए सोवियत परियोजना  1143.5 का इस्तेमाल किया गया है, जिसके आधार पर ही रूसी भारी विमानवाहक युद्धपोत ’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ और उक्रईनी युद्धपोत ’वर्याग’ का निर्माण किया गया था। बाद में,  1998 में उक्रईना ने अपना विमानवाहक युद्धपोत ’वर्याग’ चीन को बेच दिया। और चीन ने उसे ख़रीदकर, उसका नाम बदलकर ’ल्याओलीन’ रख दिया और उसे अपनी नौसेना में शामिल कर लिया। 

/ Reuters

’हथियारों का निर्यात’ नामक रूसी पत्रिका के सम्पादक अन्द्रेय फ़्रलोफ़ का मानना है कि ’वर्याग’ नामक इस विमानवाहक युद्धपोत की नक़ल करके ही चीन ने ’शानदून’ नामक अपना नया युद्धपोत बना लिया है। 

’जन्मभूमि के शस्त्रागार’ नामक एक दूसरी रूसी पत्रिका के सम्पादक वीक्तर मुख़रोव्स्की ने कहा कि चीन ने अपना विमानवाहक युद्धपोत बनाते हुए परियोजना  1143.5 का इस्तेमाल किया और उसकी इंजीनियरी तकनीक व अवधारणा को चुराकर उसका उपयोग कर लिया। 

रूस दुनिया का सबसे बड़ा विमानवाहक युद्धपोत क्यों बना रहा है

चीन ने भी अपने विमानवाहक युद्धपोत में विमानों के उड़ान भरने के लिए भाप या विद्‍युत चुम्बकीय गुलेल से विमानों को उड़ाने की तकनीक अपनाने की जगह वैसी ही ऊँची उड़नपट्टी बनाई है, जैसी ’वर्याग’ में बनी हुई है। इसके अलावा रूसी परियोजना में युद्धपोत के ऊपर विमानों के साथ-साथ मिसाइल तैनात करने की तकनीक भी शामिल की गई थी। अब चीनी विमानवाहक पोत में भी इसी तकनीक को अपनाया गया है।

वीक्तर मुख़रोव्स्की  ने कहा — इस युद्धपोत का नक़्शा या इसकी परियोजना सोवियत सत्ताकाल में तैयार की गई थी। तब हमारा मानना था कि अमरीकी युद्धपोतों के मुक़ाबले तकनीकी रूप से अधिक श्रेष्ठ बनाने के लिए सोवियत संघ को अपने युद्धपोतों पर ज़्यादा से ज़्यादा हमलावर हथियार तैनात करने चाहिए।

बेहतर और कमतर 

विशेषज्ञों के अनुसार, नए चीनी विमानवाहक युद्धपोत पर चीन ने अपना नए ढंग का इंजन बनाकर लगाया है। इसके अलावा इस युद्धपोत पर रेडियो-इलैक्ट्रोनिक उपकरण भी नए ढंग के हैं। 

/ Reuters

लेकिन सोवियत  परियोजना  1143.5 में एक कमी यह भी थी कि उस युद्धपोत पर सिर्फ़ बहुत सीमित संख्या में ही विमान तैनात किए जा सकते थे। चूँकि युद्धपोत को मिसाइलों से लैस किया गया था, इसलिए भारी विमान इस युद्धपोत से उड़ान भरने में असमर्थ थे। इस परियोजना के विमानवाहक युद्धपोत से सिर्फ़ हलके विमान ही उड़ान भर सकते थे। 

लेकिन इसके बावजूद इस नए चीनी विमानवाहक युद्धपोत पर पोतनाशक मिसाइल तैनात करके चीन ने उसकी हमलावर क्षमता को बढ़ा दिया है। इसके साथ-साथ इस युद्धपोत पर ऐसे विशेष हैलिकॉप्टर भी तैनात किए जा सकते हैं, जो पनडुब्बियों को ढूँढ़कर उनको नष्ट कर सकते हैं। 

चीन और रूस के बीच युद्ध का इतिहास

इसके अलावा यह विमानवाहक युद्धपोत खुले समुद्र में इस्तेमाल करने के लिए नहीं बनाया गया है, इसका इस्तेमाल तो सिर्फ़ तटवर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा करने के लिए ही किया जा सकता है। 

हालाँकि रूसी विमानवाहक युद्धपोत ’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ का निर्माण 1982 में शुरू किया गया था और ’वर्याग’ का निर्माण 1985 में शुरू किया गया था, लेकिन फिर भी इनकी परियोजना को पुरानी परियोजना नहीं बताया जा सकता है। काले सागर में स्थित रूसी नौसैनिक बेड़े के पूर्व कमाण्डर एडमिरल ईगर कसतोनफ़ ने कहा कि विमानवाहक युद्धपोत का महत्व उतना ज़्यादा नहीं होता, जितना महत्व उस पर तैनात विमानों का होता है।

चीन के पास कितने विमानवाहक युद्धपोत होंगे 

नए चीनी विमानवाहक युद्धपोत की जल विस्थापन क्षमता साढ़े 59 हज़ार टन होगी, जबकि यह युद्धपोत 304 मीटर लम्बा और 75 मीटर चौड़ा है। नया चीनी विमानवाहक युद्धपोत 29 समुद्री मील प्रति घण्टे की रफ़्तार से चल सकता है और अधिकतम  8 हज़ार मील की दूरी पार कर सकता है। 

चीनी मीडिया के हवाले से रॉयटर्स समाचार समिति ने जानकारी दी है कि नए चीनी विमानवाहक युद्धपोत को दक्षिणी चीनी सागर में तैनात किया जाएगा, जहाँ आने वाले दो साल तक नौसेना युद्धपोत को और ज़्यादा सक्षम बनाने की कोशिश करेगी। सेना का मानना है कि इस नए चीनी विमानवाहक युद्धपोत पर जियान - 15 या जे-15 क़िस्म के 36 लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकेंगे। 

रूस के हायर स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के व्यापक यूरोपीय और अन्तरराष्ट्रीय शोध संस्थान के वरिष्ठ विशेषज्ञ वसीली काशिन का मानना है कि चीन परियोजना 1143.5 के आधार पर एक और युद्धपोत बनाएगा और सन् 2020 तक ऐसे नए बड़े एटमी विमानवाहक युद्धपोतों का निर्माण करना शुरू कर देगा, जिनपर सिर्फ़ लड़ाकू विमान ही तैनात होंगे।  

उन्होंने कहा — चीन ऐसे कम से कम दो विमानवाहक युद्धपोत बनाएगा, जो न केवल चीन के तटवर्ती इलाकों की सुरक्षा करेंगे, बल्कि जो चीन से दूर दुनिया भर के सागरों और महासागरों में भी गश्त लगाएँगे। इस तरह चीन दुनिया के दूसरे विशाल विमानवाहक समुद्री बेड़े का मालिक बन जाएगा, जो ब्रिटेन और फ़्राँस के समुद्री बेड़ों की कुल ताक़त से भी ज़्यादा शक्तिशाली होगा।  

लेकिन, जैसाकि वीक्तर मुरख़ोव्स्की का कहना है, इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए चीन को बड़े पैमाने पर पायलटों को तैयार करने का बड़ा काम पूरा करना होगा।

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