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दुनिया को पूरी तरह से बदल देने वाले रूसी आविष्कार

चेनदार पहिए वाली गाड़ी

1837 में रूसी थलसेना के कप्तान दिमित्री ज़गर्याझ्स्की ने चेनदार पहिए (सतत-सोपान पाद) वाली गाड़ी का डिजाइन बनाया था। उन्होंने “चेनदार पहिए वाली गाड़ी” के अपने इस आविष्कार का पेटेण्ट पाने के लिए वित्त मन्त्रालय में आवेदन भी किया। उन्हें इसका पेटेण्ट मिल भी गया, लेकिन तत्कालीन वाहन निर्माता कम्पनियों ने उनके इस आविष्कार में दिलचस्पी नहीं दिखाई और इस कारण 1839 में उनका पेटेण्ट बेकार हो गया। कई दशकों के बाद 1877 में रूसी किसान और स्वाध्यायी आविष्कारक फ़्योदर ब्लीनफ़ ने दिमित्री ज़गर्याझ्स्की के अधूरे काम को पूरा किया और चेनदार पहिए वाली गाड़ी बनाई। इस आविष्कार के बाद ही पहले ट्रैक्टर बनाए गए और उसके बाद  टैंकों में चेनदार पहियों का इस्तेमाल किया जाने लगा।

बिजली से चलने वाली रेलगाड़ी

/ ITAR-TASS

शहरों और औद्योगिक केन्द्रों के तेज़ विकास के लिए परिवहन क्रान्ति आवश्यक थी और बिजली से चलने वाली रेलगाड़ी के आविष्कार के बिना परिवहन के क्षेत्र में क्रान्ति का होना सम्भव ही नहीं था। 1874 से 1876 के बीच फ़्योदर पिरोत्स्की ने एक-दूसरे से दूर दो जगहों के बीच बिजली के चालन (पारेषण) से जुड़े अनेक प्रयोग किए। इसके अन्तर्गत उन्होंने एक रेल लाइन का प्रत्यक्ष चालक और दूसरी रेल लाइन का प्रतिलोम चालक के रूप में उपयोग किया। बिजली के स्रोत से एक किलोमीटर की दूर पर एक विद्युत मोटर को रखा गया था। यह प्रयोग सफल रहा और मोटर चल पड़ी। इसके कुछ साल बाद उन्होंने सिस्त्रारेत्स्क के नज़दीक स्थित एक रेलवे लाइन पर बिजली से रेलगाड़ी चलाने का प्रयोग किया। उस विद्युत चालित रेलगाड़ी में 40 व्यक्ति बैठे हुए थे। फ़्योदर पिरोत्स्की द्वारा बनाए गए डिजाइन के आधार पर 1881 में बर्लिन के एक उपनगर में बिजली से चलने वाली पहली ट्राम लाइन शुरू की गई।

वीडियो टेप रिकार्डर

रूसी विमानन के जनक निकलाय झुकोव्स्की के छात्र अलिक्सान्दर पनितोफ़ ने अमरीका में एम्पेक्स कम्पनी शुरू की थी। पिछली सदी के छठे दशक में वे इसी कम्पनी में काम कर रहे थे। एम्पेक्स कम्पनी विश्व के पहले क्वालिटी वीडियो संकेत रिकार्डर का उत्पादन करने में सफल रही। इसके बाद लगभग पचास वर्षों तक पेशेवर चुम्बकीय वीडियो रिकार्डिंग के बाज़ार पर एम्पेक्स कम्पनी का प्रभुत्व रहा और इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में काम करने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियों को घरेलू वीडियो उपकरण का उत्पादन करने के लिए पनितोफ़ (पोनियातोफ़) के पेटेण्ट का सहारा लेना पड़ा।

रेडियो

भौतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर अलिक्सान्दर पपोफ़ ने अप्रैल 1885 में साँक्त पितेरबुर्ग विश्वविद्यालय में अपने एक व्याख्यान के दौरान बेतार संचार प्रणाली के आविष्कार की घोषणा की। उन्होंने वहाँ पर विश्व के पहले रेडियो सेट को भी प्रदर्शित किया। हालाँकि उनका शोधपत्र प्रकाशित नहीं हो सका क्योंकि वे एक सैन्य संस्थान के लिए काम करते थे। उसी समय के आस-पास इटली के गुग्लिल्मो मारकोनी भी इसी तरह के प्रयोग कर रहे थे। 1897 में मारकोनी का शोधपत्र प्रकाशित हो गया। पपोफ़ के आविष्कार के विपरीत मारकोनी के आविष्कार को उद्योग जगत ने हाथों-हाथ लिया। आज भी पश्चिम में इस बात पर बहस होती है कि रेडियो का आविष्कार पहले किसने किया था।

हैलिकाप्टर

रूसी आविष्कारक ईगर सिकोरस्की की प्रतिभा का अच्छी तरह विकास विदेश जाकर ही हो सका। 1910 में उन्होंने रोटर यानी घूर्णक चालित उपकरण का प्रारम्भिक डिजाइन पेश किया था। इस उपकरण ने सफलतापूर्वक उड़ान भी भरी थी। 1912 में उन्होंने पानी पर से उड़ान भरने वाले दुनिया के पहले वायुयान का निर्माण किया। उसके बाद उन्होंने एक से अधिक इंजनों वाले पहले वायुयान का निर्माण किया। 1917 में रूसी क्रान्ति होने के बाद उन्हें रूस छोड़कर अमरीका जाना पड़ा। अमरीका में उन्होंने सिकोरस्की एयरो इंजीनियरिंग कम्पनी के नाम से अपनी ख़ुद की कम्पनी बना ली। इस काम में उन्हें सुप्रसिद्ध रूसी संगीतकार सिर्गेय रहमानिनफ़ से काफी सहयोग मिला। अमरीका में ईगर सिकोरस्की द्वारा बनाए गए पहले प्रायोगिक हैलिकाप्टर ने सितम्बर 1939 में पहली बार उड़ान भरी। उनके बनाए इस प्रायोगिक हैलिकाप्टर के डिजाइन को आज पचास साल से भी अधिक समय बीतने के बावजूद हैलिकाप्टर का उत्तम डिजाइन माना जाता है। आज भी दुनिया भर में बनने वाले लगभग 95 प्रतिशत हैलिकाप्टरों में ईगर सिकोरस्की के डिजाइन का ही इस्तेमाल किया जाता है। 1942 में ईगर सिकोरस्की ने दो सीटों वाला हैलिकाप्टर भी बनाया था।

सौर सेल

रूसी भौतिकीविद अलिक्सान्दर स्तलेतफ़ द्वारा किए गए एक आविष्कार के कारण ही आज हम लोग टेलीविजन का आनन्द ले पाते हैं। उन्नीसवीं सदी के नौवें दशक के आख़री सालों में उन्होंने अनेक प्रयोग करके प्रकाशविद्युत प्रभाव का सैद्धान्तिक आधार प्रस्तुत किया था। प्रकाशविद्युत प्रभाव के आधार पर ही सोलर सेलों यानी सौर सेलों का उत्पादन शुरू हुआ था। सौर सेलों का आज व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अलिक्सान्दर स्तलेतफ़ ने बाह्य प्रकाशविद्युत प्रभाव के आधार पर पहले सौर सेल का निर्माण किया और प्रकाश की तीव्रता तथा प्रकाश प्रेरित धारा के बीच आनुपातिक सम्बन्ध की खोज की थी।

ट्राँसफ़ार्मर

ट्राँसफ़ार्मरों के बिना बिजली के वितरण व्यवस्था की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। रूस के वैद्युत इंजीनियर पाविल याब्लच्कफ़ और भौतिकीविद इवान उसागिन ने ट्राँसफ़ार्मरों का आविष्कार व निर्माण किया था और उन्हें चलाकर दिखाया था। सन 1875 के आस-पास पाविल याब्लच्कफ़ ने यह चमत्कार किया था। इतिहास की पुस्तकों में उनका यह आविष्कार ’बिजली के वितरण’ के नाम से दर्ज है। ट्राँसफ़ार्मर और कण्डेन्सर यानी संधारित्र वाले इस आविष्कार को पेरिस और साँक्त पितेरबुर्ग में प्रदर्शित किया गया। इसके बाद 1882 में ही लूसिएन गौलार्ड और जोसिया विलर्ड गिब्स नामक फ़्राँसीसी आविष्कारकों ने विवृत क्रोड (ओपन कोर) ट्राँसफ़ार्मर को पेटेण्ट करा लिया।

दही

हालाँकि दही का प्रचलन सदियों से रहा है, किन्तु सबसे पहले रूसी वैज्ञानिक मेचनिकफ़ ने यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया था कि दही खाने से मनुष्य की आयु बढ़ती है। 1910 में ही उन्होंने यह सुझाव दिया था कि लम्बी आयु पाने के लिए हमें दही और दही के उत्पादों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इससे आँतों के भीतर होने वाली सड़न प्रक्रिया में कमी आती है। मेचनिकफ़ ने यह सिद्ध किया कि बल्गारिया में सबसे ज़्यादा दीर्घायु लोग होते है क्योंकि वे लोग हर रोज़ दही खाते हैं। बल्गारिया में ही दही जमाने का प्रचलन शुरू हुआ था और प्राचीन काल में बल्गारिया के त्राक्या नगर में ही सबसे पहले दही जमाई गई थी।

टेलीविजन

रूसी इंजीनियर व्लदीमिर ज़्वरीकिन के आविष्कार भी अमरीका में ही सामने आए । उन्होंने इलेक्ट्रानिक टेलीविजन का निर्माण किया था, जो बीसवीं सदी का प्रमुख आविष्कार साबित हुआ। 1923 में अमरीका में उन्होंने टेलीविजन के पेटेण्ट के लिए आवेदन किया था। छह वर्ष बाद उन्होंने किनेस्कोप नामक उच्च निर्वात टेलीविजन ग्राही नलिका यानी रिसीवर ट्यूब का विकास किया। फिर उसके दो वर्ष बाद उन्होंने पहला प्रसारण उपकरण बनाया, जिसको उन्होंने आइकनोस्कोप यानी मूर्तिदर्शी नाम दिया।

पेट्रोल शोधक

आज के समय में कार के बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। किन्तु यह भी सच है कि पेट्रोल के बिना कार का चलना सम्भव नहीं है। खनिज कच्चे तेल को शोधित करके पैट्रोल बनाने के लिए खनिज तेल के भारी या उच्च क्वथनांक वाले प्रभाजों से पेट्रोल को अलग किया जाता है। खनिज तेल से पैट्रोल को अलग करने की इस प्रक्रिया के कारण ही आज हम इतनी विशाल मात्रा में पेट्रोल का उत्पादन कर पाते हैं अन्यथा कारों में खपत के लिए पेट्रोल इतनी बड़ी मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाता। आज कच्चे तेल को 70 प्रतिशत तक पेट्रोल में बदल दिया जाता है। जबकि पुरानी मानक आसवन विधियों का उपयोग करके कच्चे तेल से सिर्फ़ 10 से 20 प्रतिशत तक ही पेट्रोल प्राप्त हो सकता था। रूसी इंजीनियर व्लदीमिर सूख़फ़ ने पैट्रोल शोधन विधि का आविष्कार किया था। व्लदीमिर सूख़फ़ ने ही 1891 में औद्योगिक स्तर पर पहले पैट्रोल शोधन कारखाने का भी निर्माण किया था।

कृत्रिम रबर

कृत्रिम रबर के बिना आधुनिक अर्थव्यवस्था की कल्पना करना भी कठिन है। कृत्रिम रबर का उपयोग ज़्यादातर वाहनों, विमानों और साइकिलों के लिए टायर बनाने में किया जाता है। कृत्रिम रबर का उपयोग सील लगाने, विद्युतरोधन, चिकित्सा उपकरणों तथा दूसरे अनेक क्षेत्रों में भी किया जाता है। मिसाइल या रॉकेट छोड़ने में प्रयुक्त होने वाले ठोस ईंधन के उत्पादन के लिए भी कृत्रिम रबर अनिवार्य है। रूसी रसायनशास्त्री सिर्गेय लेबिदिफ़ ने कृत्रिम रबर के निर्माण की एक विधि विकसित की थी, जिसके द्वारा पालीब्यूटडाइईन रेजिन का निर्माण किया गया। उल्लेखनीय है कि पालीब्यूटडाइईन रेजिन व्यावसायिक रूप से लाभप्रद दुनिया की पहली कृत्रिम रबर थी। सिर्गेय लिबेदिफ़ ने इस कृत्रिम रबर के पहले नमूने को 1910 में विकसित करने में सफलता प्राप्त की थी। 1913 में प्रकाशित उनकी पुस्तक “बाई-एथिलीन हाइड्रोकार्बनों के बहुलकन सम्बन्धी अनुसंधान” में व्यावसायिक रूप से लाभप्रद कृत्रिम रबर के निर्माण के आधारभूत सिद्धान्त बताए गए हैं।

अनाज हार्वेस्टर

अन्द्रेय व्लसेंका रूस के त्वेर प्रदेश में एक जागीर के संचालक थे। 1868 में उन्होंने विश्व के पहले अनाज हार्वेस्टर का आविष्कार किया था, जिसे उन्होंने “रीपर-थ्रेसर यानी कटाई-मड़ाई यन्त्र” का नाम दिया था। इस यन्त्र के निर्माण में लकड़ी का प्रयोग ही ज़्यादा किया गया था। इसे चलाने के लिए तीन घोड़ों की ज़रूरत पड़ती थी। उन्नीसवीं सदी में बीस किसान मिलकर जितना काम किया करते थे, उतना काम यह यन्त्र अकेले ही कर लिया करता था। अन्द्रेय व्लसेंका ने दो मशीनें बनाईं थीं। हर मशीन को चलाने के लिए दो घोड़ों और एक आपरेटर की ज़रूरत पड़ती थी। त्वेर प्रदेश में स्थित अन्द्रेय व्लसेंका के खेतों में ये मशीनों कई सालों तक काम करती रहीं। इसके दस साल बाद  अमरीकी समाचारपत्रों में भी यह ख़बर छपी कि कैलिफोर्निया में एक थ्रेसर बनाया गया है। अमरीकी पत्रकारों ने इस यन्त्र को “कम्बाइन हार्वेस्टर” नाम दिया। इस पहले अमरीकी हार्वेस्टर को अन्द्रेय व्लसेंका के बनाए यन्त्र की तरह ही चलाया जाता था। इन दोनों मशीनों के बीच फ़र्क बस यही था कि अमरीकी हार्वेस्टर को चलाने के लिए 24 खच्चरों और सात आपरेटरों की ज़रूरत पड़ती थी।







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