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रूसी टैंक ’अरमाता’ और पाँचवी पीढ़ी का लड़ाकू विमान टी-50 एक जैसे

विगत 9 मई को लाल चौक पर हुई विजय परेड के दौरान एक दर्शक ने विशेष थर्मल इमेजिंग कैमरे की सहायता से अपने स्मार्टफ़ोन पर लाल चौक से गुज़रने वाली सैन्य तकनीक का विडियो बनाया और उसे इण्टरनेट में डाल दिया। इस विडियो ने दुनिया के सबसे आधुनिक और अभिनव टैंक टी-14 ’अरमाता’, आधुनिकीकृत टैंक टी-72बी3, पैदल सेना की बख़्तरबन्द लड़ाकू गाड़ियों —’कुरगान-25’ और ’बीएमपी-3’, बख़्तरबन्द गाड़ियों — ’बूमेरांग’ और ’रकूश्का-एम’, 152 मिलीमीटर की स्वचालित हावित्जर तोप — ’कोअलत्सिया-एसबी' और बख़्तरबन्द गाड़ियों — 'तायफ़ून-के' तथा ’तीग्र-एम’ जैसे मारक रूसी हथियारों के रहस्य को खोलकर दुनिया के सामने रख दिया।

लेकिन इसके बावजूद कोई चमत्कार सामने नहीं आया। क़रीब-क़रीब सभी रूसी हथियारों के रहस्य इस विडियो ने उजागर कर दिए। इस विडियो में साफ़-साफ़ यह दिखाई दे रहा है कि ’क्लासिक’ तरीकों से बने पुराने हथियारों से आधुनिकतम रूसी हथियार किस रूप में एकदम अलग ढंग के हैं।

अवरक्त (इन्फ़्रारेड) किरणों से लैस विडियो तकनीक

अगर थर्मल दूरबीन से रूसी टैंक टी-72बी3,  बख़्तरबन्द गाड़ियों — तायफ़ून-के तथा ’तीग्र-एम’, वायु रक्षा मिसाइल तोपों — बूक-एम2यू और पन्तसीर-एस के चलते हुए इंजनों को देखा जाए, तो युद्ध के मैदान में दसियों किलोमीटर दूर से भी यह पता लगाया जा सकता है कि ये हथियार आगे बढ़ रहे हैं।

इसका मतलब यह है कि ताप दूरबीन से इन्हें न सिर्फ़ देखा जा सकता है, बल्कि इनको नष्ट करने वाले मिसाइल भी बनाए जा सकते हैं। इनको नष्ट करने का काम रेथिओन और लॉकहीड मार्टिन जैसी कम्पनियों द्वारा बनाए जाने वाले अमरीकी ’एफ़जीएम-148 जवेलिन’ जैसे मिसाइल भी कर सकते हैं। ये अमरीकी मिसाइल दुनिया के ऐसे पहले टैंकरोधी मिसाइल हैं, जो आईआईआर इन्फ़्रारेड किरणों के सहारे स्वयं अपने लक्ष्य को ढूँढ़कर उस पर हमला कर देते हैं और उस लक्ष्य को नष्ट करके उसे भूल जाते हैं। 

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लेकिन टी-14 ’अरमात’ टैंक के सामने ’जवेलिन’ मिसाइल भी बेबस और बेकार सिद्ध होंगे। इन्फ़्रारेड किरणों की सहायता से खींची गई टी-14 ’अरमाता’ टैंक की तस्वीरें बेहद धुँधली दिखाई दे रही हैं। इन तस्वीरों में, बस, टैंक पर एक छोटा-सा खिड़कीनुमा छेद दिखलाई दे रहा है, जिससे टैंक के इंजन का धुआँ बाहर निकलता है। इस विडियो ने टैंक की उत्पादक कम्पनी ’उराल-वगोन-ज़ावोद’ के उपमहानिदेशक विचिस्लाफ़ ख़लितोफ़ के इस कथन की पुष्टि कर दी कि यह नया रूसी टैंक आलोपन (स्टैल्थ) तकनीक से लैस है।

इस टैंक पर रेडियम किरणों के असर को बेकार करने वाली सामग्री से बना पेण्ट किया गया है। इस विशेष पेण्ट के कारण ही युद्ध के मैदान में इस टैंक को ढूँढ़ पाना या रात के अन्धेरे में अवरक्त (इन्फ़्रारेड) किरणों की सहायता से उसे पकड़ पाना बेहद मुश्किल है। यह टैंक भी वैसा ही है, जैसे नई पीढ़ी के एफ़-22 रेप्टर या टी-50 जैसे लड़ाकू विमान हैं। यह टैंक भी इन विमानों की तरह आलोपन (स्टैल्थ) तकनीक से लैस है। 

टैंक का अदृश्य छलावरण

इस रूसी टैंक को अदृश्य बनाने और दुश्मन की आँख से छिपाने का काम सिर्फ़ उस पर दृश्य-अवरोधी पेण्ट करके ही ख़त्म नहीं हो जाता। टी-14 टैंक के लिए ’मन्तीया’ नामक एक विशेष छलावरण भी बनाया गया है। कपड़े की तरह नर्म यह छलावरण भी इन्फ़्रारेड किरणरोधी और तापरोधी जालीदार स्क्रीन से बना हुआ है। यह आवरण किसी भी उच्चस्तरीय टैंकरोधी हथियार से या टैंकरोधी हथगोलों से टैंक की सुरक्षा करता है।  

’मन्तीया’ छलावरण का निर्माण एक सहज और सामान्य सिद्धान्त के आधार पर किया गया है। मेज़पोश की तरह के इस टैंकपोश से किसी भी हथियार या बख़्तरबन्द गाड़ी को ढका जा सकता है। यह टैंकपोश अपने नीचे छिपी किसी भी चीज़ की तिहरी सुरक्षा करता है।

यह इन्फ़्रारेड किरणों को निगलकर उन्हें फीका कर देता है और चलती हुई गाड़ी या हथियार को बहुत धँधला करके दिखाता है तथा उस गाड़ी या हथियार के इंजन से निकलने वाले ताप को भी प्राकृतिक स्तर तक ले आता है। इस तरह टैंक या बख़्तरबन्द गाड़ी के होने या चलने का कोई नामोनिशाँ तक पता नहीं चलता और ’जवेलिन’ जैसे स्वचालित मिसाइल या इन्फ़्रारेड किरणों के आधार पर अपने शिकार को मारने निकले रॉकेट अपना रास्ता भूल जाते हैं। 

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उन्नत पश्चिमी टैंकों और टी-14 में फ़र्क 

टैंक सेना के पूर्व सैनिक और ’जन्मभूमि के शस्त्रागार’ पत्रिका के सम्पादक वीक्तर मुरख़ोवस्की का मानना है कि आज सिर्फ़ लड़ाकू हथियारों के बख़्तर को मज़बूत बनाना और उन्हें आलोपन (स्टैल्थ) तकनीक से लैस कर देना ही काफ़ी नहीं है। आज हथियारों और युद्ध-तकनीक को सुरक्षित बनाने के लिए बहुत से काम करने पड़ते हैं, जैसे उनके बख़्तर को काफ़ी मज़बूत बनाना पड़ता है, उन्हें जालीदार स्क्रीन और इलैक्ट्रोनिक व्यवस्था से ढकना पड़ता है तथा उनके लिए विशेष गिलाफ़ या टैंकपोश जैसे छलावरण बनाने पड़ते हैं। 

पश्चिमी देशों के उन्नत टैंकों और टी-14 ’अरमाता’ नामक रूसी टैंक की तुलना करते हुए डिजाइनरों का कहना है कि रूसी टैंक अमरीकी टैंक ’अब्रहाम्स’, फ़्राँसीसी टैंक ’लेकलेर्क’ और जर्मन टैंक ’लेओपार्ड-2’ से 25 से 30 प्रतिशत बेहतर है।

रूसी टैंक की खासियत यह है कि उसके ऊपर उभरे हुए कूबड़ में कोई सैनिक नहीं बैठा होता। टैंक के भीतर बने सुरक्षा-कैप्सूल में बैठकर ही चालक टैंक की तोप का पूरी तरह से संचालन करता है। इस टैंक में डेढ़ हज़ार लीटर डीजल क्षमता का एक नई तरह का इंजन लगा हुआ है और वह 125 मिलीमीटर की 2ए82 तोप से लैस है। इस टैंक की निर्माता कम्पनी के अनुसार टैंक का बख़्तर भी बहुपरतीय मिश्रित और बेहद मज़बूत धातुओं से बना हुआ है।

’अरमाता’ क़िस्म के टैंक पराबैंगनी (अल्ट्रा-वायलेट) दिशासूचकों से लैस हैं जो इंजन से निकलने वाली आयनित हवा के चिह्नों से गोलों और मिसाइलों को ढूँढ़ लेते हैं। टैंक की सक्रिय सुरक्षा करने वाली ’अफ़ग़नीत’ व्यवस्था विशेष गोलों की मदद से या बड़े कैलीबर वाली तोप से लक्ष्य को नष्ट कर देती है।

टैंक के डिजाइनर के अनुसार, नई दिशासूचक व्यवस्था न केवल पराबैंगनी लक्ष्यों को ढूँढ़ निकालती है, बल्कि टैंक के पास से गुज़र रहे मिसाइलों, रॉकेटों और हथगोलों को भी उनमें विस्फोट करके नष्ट कर देती है। इस वजह से विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक विघ्न-बाधाएँ भी टैंक के काम में कोई गड़बड़ी पैदा नहीं कर पातीं और वह खतरनाक लक्ष्यों को ठीक-ठीक पहचान लेता है। 

लेकिन विशेषज्ञों ने रूस-भारत संवाद को बताया कि टी-14 ’अरमाता’ की इन सभी ख़ासियतों का अभी वास्तविक युद्ध में परीक्षण किया जाना बाक़ी है। वास्तविक लड़ाई में परीक्षण होने के बाद ही ’अरमाता’ की इन ख़ासियतों की पुष्टि हो पाएगी।

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